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हिंदी विभाग का स्वर्णिम सफ़र

डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालयऔरंगाबाद के हिंदी विभाग ने पचास साल का सफर पूर्ण किया है। किसी भी संस्था के लिए पचास सालों का स्वर्णिम सफर जितना आनंददायी होता है, उतनाही प्रेरणादायी होता है। 1968 में विभाग की स्थापना हुई। प्रो. भगतसिंग राजूरकर, डॉ.राजमल बोरा, डॉ.चंद्रभानु सोनवणे, डॉ. चंद्रदेव कवडे, नारायण शर्मा, डॉ. कमलाकर गंगावणे, डॉ. अंबादास देशमुख, डॉ.माधव सोनटक्के, डॉ.गणेशराज सोनाळे, प्रो. डॉ. हणमंतराव पाटील आदि विद्वानों ने इस विभाग की भारतभर में परख और पहचान बनाने में अपनी अहम् भूमिका निभायी है। प्रो.भगतसिंग राजूरकर ‘मध्ययुगीन कविता के लिए‘ डॉ.राजकमल बोरा ‘भाषा विज्ञान‘ के लिए और चंद्रभानु सोनवणे ‘हिंदी साहित्य के सही इतिहास के लिए‘ देशभर में जाने जाते थे।


मराठवाडा जैसे पिछडे प्रदेश में स्थापित यह विभाग न केवल हिंदी भाषा और साहित्य का परंपरागत अध्ययन-अध्यापन करता रहा बल्कि निरंतर अपने पाठ्यक्रम को अद्यतन बनाना इस विभाग की खासियत रही है। प्रयोजनमूलक हिंदी, तुलनात्मक अध्ययन या भारतीय साहित्य जैसे विषयों को कई साल पहले पाठ्यक्रम में समाविष्ट कर विभाग ने अपनी अलग पहचान बनायी है। इक्कीसवीं सदी को विमर्शों की सदी कहा जाता है लेकिन दलित विमर्श और स्त्री विमर्श बहुत पहले से यहां पाठ्यक्रम का हिस्सा बने हुए हैं। इतना ही नहीं बल्कि कोई रचना या रचनाकार जब पहली बार छपा या पुरस्कृत हुआ, वह रचना या रचनाकार यहां के छात्रों ने अपने अनुसंधान का विषय बनाया। एम.फिल् तथा पीएच.डी. के शोध विषय परम्पराग न होते हुए नितनये बनाने का भरसक प्रयास होता रहा। यहां तक कि, दक्खिनी हिंदी पर अनुसंधान कार्य करते समय पहले उसका लिप्यंतरण और फिर अनुसंधान कार्य संपन्न करानेवाला संभवतः यह पहला विभाग होगा।


डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग ने इन पचास वर्षों में कई अकादमिक कार्यक्रमों का सफलतापूर्वक आयोजन किया है। अखिल भारतीय हिंदी साहित्य परिषद के अधिवेशन से लेकर हर वर्ष एक नये विषय पर ‘राष्ट्रीय संगोष्ठी‘, नामी विद्वानों-लेखकों के व्याख्यान, नवलेखक शिविर तथा अनुवाद कार्यशालाएँ, पुनर्नवा पाठ्यक्रम हो या पीएच.डी. पूर्व पाठ्यक्रम विभाग ने अत्यंत अकादमिक ढंग से सफलतापूर्वक पूर्ण किये हैं।


विभाग हर वर्ष राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन ही नहीं करता बल्कि हर वर्ष संगोष्ठियों में उपस्थित नामी विद्वानों के विचार अन्य अध्येताओं तक पहुंचाने की दृष्टि से उसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने की भी परम्परा आज तक चल रही है। विभाग ने विभिन्न विषयों की चालीस से भी अधिक किताबें प्रकाशित की है। इस विभाग के सभी सदस्य लेखन-चिंतन की परम्परा का निर्वाह करते रहे हैं। विभाग के सभी सदस्यों ने मिलकर अब तक लगभग 500 ग्रंथों का निर्माण किया है। न केवल आलोचनात्मक बल्कि सृजनात्मक लेखन की भी विभाग में परम्परा रही है। अनुवाद के क्षेत्र में भी विभाग के पूर्व तथा विद्यमान अध्यापकों ने अपना अनमोल योगदान दिया है।


डॉ.भगतसिंग राजूरकर, डॉ.राजकमल बोरा, डॉ.माधव सोनटक्के, डॉ.अंबादास देशमुख, डॉ.हणमंतराव पाटील से लेकर विद्यमान सदस्य डॉ.संजय नवले, डॉ.सुधाकर शेंडगे, डॉ. भारती गोरे तथा डॉ.भगवान गव्हाडे तक अपनी रचनाओं के लिए ‘हिंदी साहित्य अकादमी‘ तथा ‘केंद्रीय हिंदी निदेशालय‘ से पुरस्कृत होत रहे हैं। इससे विभाग के सदस्यों के पुस्तकों का स्तर अपने-आप स्पष्ट हो जाता है।


इन पचास वर्षों में विभाग द्वारा 415 एम.फिल. तथा 456 पीएच.डी. का अनुसंधान कार्य संपन्न हुआ है। विभाग के 148 छात्रों ने नेट-सेट में तथा 28 छात्र जेआरएफ में सफलता प्राप्त कर चुके हैं। परिणाम स्वरूप महाराष्ट्र के विभिन्न विश्वविद्यालयों में इसी विभाग के छात्र ज्ञानदान का कार्य कर रहे हैं। सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय, पुणे में हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो.सदानंद भोसले, डॉ.विजय रोडे, मुंबई विश्वविद्यालय में डॉ.माधव पंडित, डॉ.दत्तात्रय मुरूमकर, डॉ.सचिन गपाट, केंद्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद में डॉ.विष्णू सरवदे, नागपुर विश्वविद्यालय में डॉ.दिलीप गि-हे, उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव में डॉ.सुनिल कुलकर्णी, पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होळकर सोलापुर विश्वविद्यालय, सोलापुर में डॉ.अनंत वडघणे के साथ-साथ विभिन्न महाविद्यालयों में प्रधानाचार्य के रूप में कार्य कर रहे हैं। जिनमें डॉ.सुरेश सदावर्ते, डॉ.रावसाहेब जाधव, डॉ.रामेश्वर बांगड, डॉ.राजकुमारी गडकर, डॉ.अशोक हजारे, डॉ. ओमप्रकाश नायर जैसे कई नाम गिनाये जा सकते हैं। डॉ.जी.टी. देगांवकर तथा डॉ. अशोक हजारे प्रौढ एवं निरंतर शिक्षा केंद्र में संचालक रह चुके हैं। डॉ. श्रीमती उषा वर्मा, राज्य उत्पादन शुल्क विभाग में उपायुक्त है तो डॉ. चेतन कमलल्लु मुंबई विश्वविद्यालय केउपकुलसचिव तथा श्री.अनिल वाघ महाबैंक में राजभाषाधिकारी पद पर कार्यरत हैं। शिक्षा और संस्कार द्वारा विद्यार्थियों को सक्षम बनाकर उनको अपने पैरों पर खड़ा करके उनको सामाजिक प्रतिष्ठा देने का काम इसी विभाग ने किया है।


हिंदी विभाग के संस्थापक अध्यक्ष स्व.डॉ. भगतसिंग राजूरकरजी को इसी विश्वविद्यालय के कुलसचिवतथा बाद में कुलपति बने और इसी विभाग के छात्र डॉ. इरेश स्वामी को सोलापुर विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति बननेका सौभाग्य मिला है तो डॉ.जोगेंद्रसिंह बिसेन स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाडा विश्वविद्यालय प्र.कुलपति बनेहैं। आज विभाग में प्रो.डॉ. सुधाकर शेंडगे, प्रो.डॉ. संजय नवले, प्रो.डॉ. भारती गोरे, डॉ संजय राठोड, डॉ. भगवान गव्हाड़े कार्यरतहै। इनमें से चार इसी विभाग के छात्र है। इससे बढ़कर विभाग की और क्या उपलब्धि हो सकती है।
इस विभाग में डॉ.नगेंद्र, नामवरसिंह, कमलेश्वर, चित्रा मुदगल, प्रभाकर क्षोत्रिय, अरूण कमल और भाषाविद् गणेश देवी जैसे कई विद्वानों ने आकर अपने विचारों से लाभान्वित किया है। आज विभाग में विभिन्न विमर्शों के साथ-साथ मीडिया, कम्प्यूटर, माध्यमांतर और तुलनात्मक विषय पर अनुसंधान कार्य किया जा रहा है। समय की मांग को ध्यान में रखकर विभाग में दृक-श्राव्य माध्यम कक्ष, भाषा प्रयोगशाला, शोध संदर्भ कक्ष, विभागीय ग्रंथालय का निर्माण किया गया है। अनुसंधान मंच की स्थापना की गयी है, जिसके माध्यम से अनुसंधानकर्ता वैचारिक बहस करते हैं। अनुसंधान के स्तरीय शोधालेखों की किताब भी प्रकाशित हो जाती है। छात्रों के लिए प्रति वर्ष छात्र गोष्टी का भी आयोजन किया जाता है।